खुसकिस्मत है हम जो हमे ये ज़िन्दगी मिली, खामखा रोया करते है , ढेरो
शिकायते लिए इश्वर को दोषी ठहराते है | कभी खुली आँखों और खुले विचारो से
दुनिया की ओर देखे तो पाए की हम कितने सुखी है |
हमारी आस्था
भगवान् में हमशा ही रहती है | हर दिन किसी देव या देवी के पूजन का दिन
मान्य है | इतने आस्तिक होते हुए भी हूँ तीन दिन तो सप्ताह में ऐसे निकाल
ही लेते है, जब मांस का आहार कर सके ... "वाह मेरे भक्त !! पूजा का अच्छा प्रसाद खाता है तू", ऐसा ऊपर बैठा विधाता सोचता होगा | :)
मै
न तो आस्तिक हु, और न ही नास्तिक | मुझे इश्वर के अस्तित्व पर संदेह है और
विश्वास भी , दोनों ही पहलू है मेरे विश्वास में ... | खैर मै बात
उनकी करना चाहता हु, जो इश्वर को मानते तो है पर सिर्फ उनके प्रकोप के डर
से | कौन नहीं जानता, की क़त्ल एक संगीन जुर्म है ., लेकिन कानून कहता है
कतल यानी इंसानों का क़त्ल न की किसी और जीव जन्तुओ का | क्या भावनाए,
प्यार, अपनापन हम इंसान ही समझते है ? करुणा, दया तो हममे ही है, जानवरों
में कहा ... !!
अगर कोई मेरे जैसी बाते आज किसी भी युवा समूह में
कहे, तो लोग कहेंगे की महात्मा प्रवचन दे रहे है | कोई उनसे कहे की प्रवचन
सुनने के लिए जो आस्था चाहिए वो एक मांसाहारी के पास कभी न होगी | यह तो
महज एक सुलझी हुई समझ है " जियो और जीने दो "...|
मैं भी कभी
मांसाहारी था और मैं ये समझ सकता हु की कुछ ये गलती जाने अनजाने में कर
रहे है | अगर कोई बनी बनायीं स्वादिष्ट चीज़ थाली में पडोस दी जाए, तो लुफ्त
उठाने में क्या हर्ज़ है | मन में दो ही बाते चलती है एक की यह काफी
पौष्टिक है, दूसरी की सभी तो खा ही रहे है फिर हर्ज़ ही क्या है |
कहते
है एक बच्चे का प्राथमिक विद्यालय उसका परिवार होता है और जब विद्यालय के
शिक्षक ही तुम्हे प्रोत्साहन दे तो फिर कौन सी सोच और कैसी सोच |
मैं
हमेशा इस बात का ख्याल रखता हु की मेरे किसी भी कर्म से किसी का नुकसान तो
नहीं हो रहा और जब वो नुकसान किसी जीव की हत्या हो तो मैं किस दिल से इस
पेट को उनकी कब्र बनाऊ |
इतनी छोटी सी बात लोगो को समझने में बुढ़ापा आ जाता है और वो ता उम्र इश्वर की सेवा करते है.. अजीब है ये..
मेरी तो समझ से परे है
No comments:
Post a Comment